Tuesday, October 23, 2012

रोशनी जाती रही लेकिन हौसला बढ़ता गया

स्कूल के दिनों से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती गई जो कॉलेज पहुंचने तक पूरी तरह बुझ गई लेकिन डॉ. आशीष सिंह ठाकुर का हौसला इसके मुकाबले दुगुनी रफ्तार से बढ़ता गया। महज ऑडियो कैसेट सुन-सुन कर डॉ. ठाकुर ने एमए,जेआरएफ,पीएचडी, सेल टैक्स और आईएएस जैसी सफलता की सीढिय़ां बिना किसी बाधा के और उल्लेखनीय सफलता के हासिल कर ली। आज वह भारतीय डाक सेवा (आईपीएस) के अफसर के नाते 5 जिलों का डाक विभाग बिना किसी बाधा के संभाल रहे हैं।

चर्चा करते हुए डॉ. ठाकुर मंगलवार की दोपहर सिविक सेंटर स्थित अपने दफ्तर में रूटीन का काम-काम भी निपटा रहे थे। फाइलों पर दस्तखत करने उनके सहायक एल्युमिनियम की विशेष पट्टी दस्तखत वाली जगह रख रहे थे और डॉ. ठाकुर बेहद सहज होकर दस्तखत करते हुए लगातार फाइलें भी निपटा रहे थे। बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा- मेरा स्टाफ ही मेरी आंखें हैं, इसलिए मुझे कभी भी असहज नहीं लगता। ऑफिस के बाहर परिजनों और दोस्तों ने कभी मेरा हौसला टूटने नहीं दिया। बिलासपुर दैहान पारा के मूल निवासी डॉ. ठाकुर ने बताया कि स्कूल तक तो स्थिति कुछ ठीक थी लेकिन धीरे-धीरे रोशनी कम होती गई। न्यूरो रैटिन्याओरिस की वजह से कॉलेज पहुंचते तक दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी थी। इसका थोड़ा अफसोस तो हुआ लेकिन मैने अपना लक्ष्य पहले ही तय कर रखा था। दोस्तों की मदद से मैं पढ़ाई पूरी कर रहा था। दोस्त किताबें पढ़ते तो उन्हें मैं रिकार्ड कर लेता और इस तरह एमए (इतिहास) में दाखिला लिया। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय से 2002 में मैने गोल्ड मैडल के साथ एमए किया। इसके पहले एमए प्रिवियस के दौरान यूजीसी का जूनियर रिसर्च फैलो (जेआरएफ)क्लियर कर चुका था। जेआरएफ दूसरी बार भी किया और लगातार दो बार जेआरएफ क्लियर करने वाला मैं देश का पहला युवा हूं। इसके बाद राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सेल टैक्स आफिसर के तौर पर चयनित हुआ। इस दौरान आईएएस की तैयारी भी कर रहा था। मैने परीक्षा दी और 2009 में 435 वें रैंक के साथ मुझे आईपीएस दिया गया। इस बीच मैने 2010 में आधुनिक भारतीय इतिहास पर पीएचडी भी पूरी कर ली। डॉ. ठाकुर का कहना है कि यहां 5 जिलों की डाक सेवा का नियंत्रण और संचालन करना कभी भी मुश्किल नहीं रहा, क्योंकि अभ्यास और अनुभव की वजह से अब सब कुछ सहज लगता है।

'टॉक्स' और 'जॉका' ने बनाया आईटी फ्रैंडली
भारतीय खाद्य निगम में प्रबंधक प्रहलाद सिंह ठाकुर और गृहिणी ममता सिंह ठाकुर के पुत्र डॉ. आशीष सिंह ठाकुर ने बताया कि एक सामान्य जीवन जीने में उन्हें दिक्कत नहीं आती। वह मोबाइल और लैपटॉप भी सहजता से इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल में 'टॉक्स' और लैपटॉप में 'जॉका' साफ्टवेयर है। इससे मोबाइल-लैपटॉप का कोई भी की-बोर्ड दबाने अथवा स्क्रीन पर कुछ भी डिस्प्ले होने की स्थिति में यह साफ्टवेयर उसे पढ़ देता है। इसलिए कॉल करने और लैपटॉप पर फाइलें पढऩे (सुनने) में कोई दिक्कत नहीं आती।

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