Monday, July 8, 2013

उजड़ जाएंगे हम क्योंकि बसानी है नई बस्तियां

गांवों में लोग जान चुके हैं कि जल्द ही उन्हें छोडऩी पड़ेगी अपनी जमीन
 अकलीआमा-चेलिकआमा पहाड़ों के जंगलों में दूर-दूर तक कोई आबादी नजर नहीं आती है। लोगों को जानकर हैरत होगी कि चेलिकआमा नाम का गांव राजस्व नक्शे पर तो है लेकिन वहां  40 साल से कोई आबादी नहीं है। वहीं अकलीआमा गांव में आज भी महज एक घर है। आस-पास कुछ गांव है जरूर। आबादी यहां उंगलियों पर गिनने लायक है लेकिन यहां की जमीनों के मालिक आस-पास के गांव से लेकर सहसपुर लोहारा तक रहते हैं। बीते साल जबसे इन गांवों में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की हलचल बढ़ी है, तब से लोगों में भविष्य को लेकर संशय होने लगा है। हालांकि इन सब के लिए 'दिल्लीÓ अभी दूर है। 
नियम के मुताबिक जीएसआई अपना पूर्वेक्षण कार्य मार्च 2014 तक पूरा करेगा। उसके बाद मिली रिपोर्ट के आधार पर छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन और भिलाई स्टील प्लांट के संयुक्त उपक्रम की ओर से माइनिंग लीज के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू होगी। जानकार पूरी प्रक्रिया में कम से कम 5 साल का वक्त लगने की उम्मीद जता रहे हैं। दूसरी तरफ जीएसआई के ड्रिलिंग कार्य में मजदूरी कर रहे इन्हीं गांवों के युवा और घरों में रह रहे बुजुर्ग यह अच्छी तरह जान चुके हैं कि खदान शुरू होने पर इन्हें अपनी जमीन छोडऩी पड़ेगी। 
बोदलपानी के रास्ते बीएसपी-सीएमडीसी को आवंटित क्षेत्र जाते हुए सबसे पहले मिलता है अकलीआमा गांव। यहां जीएसआई की ड्रिलिंग पिछले साल खत्म हो चुकी है। कुछ मशीनें यहां हैं और पहाड़ों के गर्भ से निकले लोहा पत्थर के टुकड़े आस-पास बिखरे पड़े हैं। यहां दूर तक खेत नजर आ रहे थे और पूरे गांव में महज एक घर मिला। शहरी हिसाब से इसे हाउसिंग कांप्लेक्स मान सकते हैं, क्योंकि यहां सिर्फ एक ही परिवार के 16-17 सदस्य रहते हैं। दोपहर के वक्त घर में बहुएं काम में व्यस्त थी, बच्चे खेल रहे थे तो घर की सियान भूरी बाई गोंड़ साफ-सफाई में जुटी थी। घर के युवक चेलिकआमा में जीएसआई के मातहत मजदूरी करने गए हुए थे। दीवार पर घर के मालिक का नाम सुखीराम और मोबाइल नंबर लिखा हुआ है। वजह, आस-पास के गांव में गोंड़ परंपरा से बलि देना और पूजा करने का काम सिर्फ सुखीराम ही करता है। भूरी बाई पास ही बंधे हुए सुअरों और बकरों को दिखाते हुए बताती हैं कि 15 दिन बाद होने वाली पूजा में बलि देना है। जब मैने लौह अयस्क खदानों के बारे में पूछा तो भूरी बाई ने बताया कि यहां आस-पास सिर्फ उसके परिवार के खेत हैं। अब हम सुन रहे हैं कि आगे यहां खदान शुरू होगी। लेकिन हम लोग परेशान नहीं है क्योंकि अगर सरकार हमको यहां से हटाएगी तो दूसरी जमीन भी देगी।  अकलीआमा से आगे चेलिकआमा के रास्ते में कहीं कोई गांव नहीं है। इस बारे में सहसपुर लोहारा राजपरिवार के सेक्रेट्री कृष्ण कुमार तिवारी बताते हैं कि 40 साल पहले चेलिकआमा गांव आबाद था लेकिन ग्रामीण स्वेच्छा या अन्य कारणों से पहाड़ों में एक जगह से दूसरी जगह बसते रहते हैं, इसलिए चेलिकआमा गांव अब वीरान है। श्री तिवारी ने बताया कि चेलिकआमा गांव वीरान जरूर है लेकिन वहां खेती होती है और इनमें राजपरिवार सहित कई ग्रामीणों की जमीनें भी है। श्री तिवारी का कहना है कि भविष्य में जब भी खदान शुरू होगी तो भू-अधिग्रहण होगा और उचित मुआवजा भी मिलेगा। वैसे भी सरकारी कंपनी को जमीन देने के नाम पर यहां विवाद की आशंका नहीं है। 
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बीएसपी-सीएमडीसी के प्रस्तावित खनन क्षेत्र में आने वाले गांवों और आबादी का ब्यौरा
राजस्व सर्किल रेंगाखार कलां ग्राम पंचायत मिनमिनया
पटवारी हल्का नं. 45, जुनवानी जंगल
ग्राम आबादी
अकलीआमा 18
चेलिक आमा वीरान
गंजई डबरी 127
घुघवादाहरा 26
बोदलपानी 127
मिनमिनया जंगल 319
भालापुरी 212
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कुल 829
(आबादी 2001 की जनगणना के अनुसार)
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ये शिकारी बच्चे गुम हो जाएंगे खदानों में ..?
जीएसआई की हलचल बढऩे के साथ-साथ भविष्य की तैयारी भी शुरू हो रही है। आगे यहां भू-अधिग्रहण होना है। इसके बाद यहां की बैगा-गोंड़ आबादी को विस्थापित होना पड़ेगा। चेलिकआमा जाते हुए रास्ते में मिले ये बैगा जनजाति के बच्चे अपने शिकार में मशगूल थे। इनके शिकार का तरीका भी बिल्कुल जुदा था। इनके पास कमान थी लेकिन तीर नहीं। कमान की रस्सी में गोटी फंसाने का इंतजाम, जिससे बच्चा बिल्कुल सटीक निशाना लगा कर परिंदे मार रहा था। इसके अलावा इन बच्चों ने जंगल में जगह-जगह कच्ची टहनियां गाड़ रखी थी। जिस पर पीपल-बड़ का लासा (गोंद) लगा हुआ था। इन टहनियों पर उड़ता परिंदा या कोई भी जानवर बेहद तेजी से चिपक जाता है। फिर गोंद से उस जानवर को छुड़ाने के बाद इन बच्चों की शानदार दावत तय है। इन बच्चों ने बेहद सकुचाते हुए अपने शिकार के गुर तो बता दिए लेकिन नाम बताने की बारी आई तो सारे के सारे तेजी से भागते हुए जंगलों में गुम हो गए।

Monday, June 10, 2013

देश का सबसे उम्दा लौह अयस्क कवर्धा में

बीएसपी-सीएमडीसी के बीच करार के बाद कवर्धा के जंगलों में बढ़ी हलचल

अकलीआमा में जीएसआई ने ड्रिलिंग पूरी कर ली है 
कवर्धा के जंगलों में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को देश में अब तक का सबसे उम्दा आयरन ओर (लौह अयस्क) मिला है। राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार इसमें लौह तत्वों की मात्रा 65 फीसदी से ज्यादा है।जीएसआई के वैज्ञानिक ओर की क्वालिटी इससे भी बेहतर होने की उम्मीद जता रहे हैं।
आने वाले सालों के लिए भिलाई स्टील प्लांट की धमन भट्ठियों में कबीरधाम (कवर्धा) जिले का लौह अयस्क ही ज्यादा इस्तेमाल होगा। तीन नवंबर 2012 को हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में लौह अयस्क की आपूर्ति के लिए छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (सीएमडीसी)और सेल के बीच करार हुआ था। आगे सीएमडीसी और बीएसपी का ज्वाइंट वेंचर बनना है। जिसके अधीन कवर्धा के अकलीआमा-चेलिकआमा क्षेत्र की 1920 हेक्टेयर की लौह अयस्क खदानें होंगी। इसी के तहत इन दिनों कवर्धा जिले के घने जंगलों से घिरे पहाड़ों में जीएसआई के भू-वैज्ञानिक अपने काम में जुटे हुए हैं। पिछले साल मार्च से शुरू हुए पूर्वेक्षण में अब तक अकलीआमा क्षेत्र में ड्रिलिंग हो चुकी है। इसके बाद अब भाला पुरी और चेलिकआमा क्षेत्र में जीएसआई की ड्रिलिंग मशीनें लगी हुई हैं। तकरीबन 300 मीटर की गहराई तक इन मशीनों के जरिए लौह अयस्क के नमूने निकाले जा रहे हैं। जीएसआई के भू-वैज्ञानिक पूर्वेक्षण के नतीजों को लेकर गोपनीयता बरत रहे हैं। भू-वैज्ञानिक  सिर्फ इतना ही कहते है कि यहां के अयस्क में तो 65 फीसदी से ज्यादा लौह तत्व की मौजूदगी प्रमाणित हो रही है।आगे इससे भी ज्यादा शुद्ध अयस्क यहां मिल सकता है। जीएसआई को यहां पूर्वेक्षण के लिए सीएमडीसी ने दो साल का ठेका  दिया है। ठेके का एक साल पूरा होने को आ रहा है। एक अफसर ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के करियर में इतना शुद्धतम अयस्क कहीं नहीं देखा है। हालत यह है कि ड्रिलिंग के दौरान गर्म होकर कटर के ब्लेड बार-बार टूट रहे हैं। ऐसे में जीएसआई के लिए यहां ड्रिलिंग बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है। पहले जहां कोलकाता से कटर मंगाए जा रहे थे। वहीं अब चाईबासा (झारखंड)से स्पेशल ऑर्डर देकर बुलवाया जा रहा है।
कहां-कहां हो रही ड्रिलिंग
चेलिक आमा में ड्रिलिंग जनवरी 2 0 1 3 
कबीरधाम जिले के बोड़ला तहसील की सहसपुर लोहारा उपतहसील के अंतर्गत जीएसआई की टीम ड्रिलिंग में जुटी हुई है। इसमें भाला पुरी और केसदा क्षेत्र (चेलिक आमा) में वरिष्ठ भू-वैज्ञानिकों पी. भट्टाचार्य, जीएस पुंढीर और पीपी कुंदेवार की देखरेख में ड्रिलिंग हो रही है। जीएसआई ने अपनी सुविधा के लिए यहां के बोर होल को सीकेबी (छत्तीसगढ़, कवर्धा, भाला पुरी ब्लॉक) का कोड नाम दिया है।
लौह अयस्क सबसे शुद्ध कैसे
क्षेत्र अयस्क मात्रा का प्रतिशत
दल्ली राजहरा 62-63
रावघाट 54-62
बैलाडीला 58-64
कबीरधाम 65 से 69 तक संभावित
छत्तीसगढ़ ही नहीं देश में भी सबसे शुद्धतम
अकलीआमा-चेलिकआमा में मिलने वाला अयस्क छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश का शुद्धतम अयस्क है। वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक शलभ शाहा ने बताया कि आम तौर पर 60 फीसदी तक लौह तत्व वाले अयस्क को बेहतर क्वालिटी का माना लिया जाता है, वहीं सर्वोत्कृष्ट ओर में लौह तत्व की मात्रा 69 प्रतिशत तक हो सकती है। रावघाट और दल्ली राजहरा के ओर को अब तक श्रेष्ठ माना जाता था लेकिन कवर्धा के जंगलों में लौह अयस्क भंडारों के बारे में शुरुआती सूचना तो यही है कि इनमें 65 फीसदी से ज्यादा लौह तत्व है। इस हिसाब से यह देश का शुद्धतम लौह अयस्क है। कर्नाटक के बेल्लारी स्थित सेंडूर वैली की 150 खदानों में 64 से 65 फीसदी तक लौह तत्व की गुणवत्ता वाला अयस्क मिलता है।

Saturday, June 8, 2013

शिवनाथ नदी  निकलती है महाराष्ट्र के गढ़चिरौली 

जिले से , पढ़ाया जा रहा पानाबरस छत्तीसगढ़

शिवनाथ नदी का उदगम स्‍थल 
अंग्रेजी राज में शिवनाथ नदी के उद्गम स्थल को लेकर जो गलती हुई, वह आज भी बदस्तूर जारी है। पाठ्यपुस्तकों से लेकर सामान्य ज्ञान की तमाम पुस्तकों और वेबसाइटों तक में शिवनाथ नदी का उद्गम राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी के पास पानाबरस पहाड़ी पढ़ाया जा रहा है। जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट है। शिवनाथ नदी पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले को गोडऱी गांव से निकलती है।
ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ शासन स्तर पर इसकी जानकारी नहीं है। संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व ने बाकायदा शिवनाथ नदी के उद्गम से संगम तक का अध्ययन करवा 'संस्कृति सरिता शिवनाथ' पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसका विमोचन पिछले साल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया। इसके बावजूद स्कूली पाठ्यक्रम, प्रतियोगी परीक्षाओं और वेबसाइट में यह गलती जारी है।
छत्तीसगढ़ बोर्ड की 12 वीं में चल रही पुस्तक 'प्रबोध भूगोल' की इकाई 10 पृष्ठ 329 में लिखा है-''शिवनाथ का उद्गम राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ तहसील के 625 मीटर ऊंची पानाबरस पहाड़ी से हुआ है, जो अपने उद्गम स्थल से 40 किमी की दूरी तक उत्तर की ओर बह कर बिलासपुर जिले की सीमा में पूर्व की ओर बहते हुए शिवरी नारायण के निकट महानदी में विलीन हो जाती है।'' यह पूरा का पूरा वाक्य ही अपने आप में गलत है, इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के बच्चे यही गलत जानकारी सालों से पढ़ रहे हैं। 
 अंबागढ़ चौकी और पानाबरस के लोगों में इस तथ्य को लेकर कभी भ्रम नहीं रहा कि शिवनाथ नदी गोडऱी से निकलती है। पानाबरस गांव के 74 वर्षीय कोटवार बाबूदास मानिकपुरी बताते हैं कि उन्होंने भी 40 के दशक में कक्षा चौथी के भूगोल में यही पढ़ा था कि शिवनाथ नदी पानाबरस की पहाडिय़ों से निकलती है। हालांकि यह गलती अंग्रेजों के दौर की है, क्योंकि तब चंद्रपुर से दुर्ग तक का क्षेत्र चांदा तहसील में आता था। हो सकता है तब पानाबरस जमींदारी और कोटगुल जमींदारी को एक माना जाता रहा होगा। इसलिए कोटगुल से निकलने वाली शिवनाथ नदी को पानाबरस दर्ज किया गया। लेकिन अब तो इस गलती में सुधार किया जाना चाहिए। 
 

गोडऱी है शिवनाथ का वास्तविक उद्गम

उदगम स्‍थल के पास लेखक
शिवनाथ नदी का वास्तविक उद्गम महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले की कोटगुल तहसील में कोरची से लगे गोडऱी गांव के समीप खेतों से होता है। 
अंबागढ़ चौकी से गोडऱी करीब 40 किमी की दूरी पर है। उद्गम स्थल इस मौसम में बिल्कुल सूखा है। उद्गम से लगा खेत कुमार साय तुलावी गोंड़ का है। कुमार साय की पत्नी खुज्जी बाई ने बताया कि 35-36 साल पहले उद्गम से बारहो महीना पानी झरते रहता था, लेकिन अब उद्गम से डेढ़ किमी आगे से ही पानी नजर आता है। यहीं पास में ग्रामीणों में खंडित अश्वारोहियों की प्रतिमाएं स्थापित कर मंदिर बनाया है। ग्रामीण इसे लमसेना-लमसेनी की प्रतिमा कहते हैं। जनश्रुतियों के अनुसार उद्गम स्थल के करीब पहाडिय़ों पर टीपागढ़ है। 
जहां के राजा के 7 बेटे व एक बेटी थी। बेटी के लिए दामाद खोज गया, जिसका नाम शिवनाथ था। बदलते घटनाक्रम में इसी जगह शिवनाथ की बलि दे दी गई थी। शिवनाथ को खोजते हुए पहुंची राजकुमारी के पल्लू से शिवनाथ की उंगली की अंगूठी टकराई और लाश बाहर आ गई। इसके बाद पानी का स्त्रोत फूट पड़ा और दोनो बह गए। इसी जनश्रुति पर अब इस्पात नगरी भिलाई के लोकवाद्य संग्राहक रिखी क्षत्रिय एक महानाट्य की तैयारी भी कर रहे हैं। रिखी को उम्मीद है कि इस महानाट्य से लोगों को शिवनाथ के वास्तविक उद्गम स्थल की जानकारी मिलेगी।

जनश्रुति के अनुसार यह खण्डित
प्रतिमायें लमसेना-लमसेनी की हैं
'' छत्तीसगढ़ शासन की नदियों के उद्गम से संगम तक सर्वेक्षण की परियोजना में मुझे शिवनाथ नदी के अध्ययन का दायित्व दिया गया था। पूर्व में प्रचारित पानाबरस की पहाडिय़ों तक मैं भी पहुंचा था, तब वहां मुझे गढ़चिरोली (महाराष्ट्र) में शिवनाथ के उद्गम की जानकारी मिली। स्थल निरीक्षण और विस्तृत सर्वेक्षण के बाद इस संबंध में अब कोई भ्रम नहीं रह गया है। पाठ्य पुस्तकों और प्रतियोगी परीक्षाओं में यह गलती सुधारी जानी चाहिए।'' 
कामता प्रसाद वर्मा, संस्कृति व पुरातत्व विभाग में कार्यरत एवं शासन की पुस्तक 'संस्कृति सरिता शिवनाथ'  के लेखक
''19 वीं शताब्दि की शुरूआत में नदियों के उद्गम स्थल को लेकर गंभीरतापूर्वक अध्ययन नहीं हुआ था। इसलिए अंग्रेजी शासन काल में शिवनाथ नदी का उद्गम स्थल त्रुटिवश अंबागढ़ चौकी के समीप पानाबारस पहाड़ी दर्ज किया गया। आज भी वही गलती चल रही है और इसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए। इसमें भारतीय सर्वेक्षण विभाग को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी, ताकि छत्तीसगढ़ के सामान्य ज्ञान को लेकर भ्रम की स्थिति न रहे।'' 
प्रो. लक्ष्मीशंकर निगम, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व के ज्ञाता
''हम लोगों ने प्रबोध भूगोल 7 साल पहले लिखी थी। आज भी वही किताब 12 वीं में चल रही है। इस वक्त मैं नहीं बता पाउंगा कि हमनें किस आधार पर शिवनाथ नदी का उद्गम पानाबरस की पहाड़ी लिखा है। वैसे आप अगर महाराष्ट्र का गढ़चिरोली जिला बता रहे हैं, तो संभव है वह सही होगा। आम तौर पर पाठ्यपुस्तकों में लोकप्रिय मान्यताओं को भी तथ्यों के तौर पर दर्ज कर लिया जाता है। हमारी पुस्तक में शिवनाथ नदी के 40 किमी बह कर बिलासपुर मे मिलने वाला तथ्य त्रुटिवश आ गया है, वह सही नहीं है।'' 
डॉ. राजशेखर, सीजी बोर्ड की 12 वीं में चल रही पुस्तक 'प्रबोध भूगोल' के तीन लेखकों में से एक 

Wednesday, May 29, 2013

जलाभिषेक की अनूठी मिसाल कायम की एक शिवभक्त ने

अब इसे विश्व रिकार्ड में दर्ज करवाने की तैयारी

मानसरोवर झील से पवित्र  जल लेते श्री चावड़ा 
ट्विन सिटी के एक शिवभक्त ने एक अनूठा कदम उठाते हुए कैलाश मानसरोवर के जल से देश भर के प्रचलित सभी ज्योतिर्लिंगों के जलाभिषेक पूरे किए हैं। पद्मनाभपुर दुर्ग निवासी अधिवक्ता विनोद चावड़ा अपने इस प्रयास को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड मेें दर्ज करवाने जा रहे हैं। 
अपने इस प्रयास के बारे में श्री चावड़ा ने बताया कि उन्होंने कैलाश मानसरोवर की तीन यात्राएं 2009,10 और 12 में की थी। पहली यात्रा के दौरान ही मन में विचार आया कि क्यों न ज्योर्तिलिंगों का अभिषेक इस पवित्र जल से किया जाए। इसके लिए त्र्यंबकेश्वर से यात्रा शुरू हुई और जब महाराष्ट्र में 5 स्थानों पर जल चढ़ाया तो स्वत: ही 'शिवप्रेरणाÓ मिली कि क्यों न देश भर के तमाम ज्योर्तिलिंगों पर इसी जल से जलाभिषेक किया जाए। इस तरह रास्ते बनते गए। उनके हर सफर में परिजन और करीबी लोग भी साथ थे। बीते दशक में रावघाट लौह अयस्क खदान के निजीकरण के रहस्योद्घाटन के बाद आंदोलन शुरू करने और अंजाम तक पहुंचा कर सुर्खियों में आए अधिवक्ता श्री चावड़ा ने बताया कि उन्होंने अपने निवास से 29 सितंबर 10 को मानसरोवर के जल से ज्योर्तिलिंगों के जलाभिषेक की अनूठी तीर्थयात्रा की शुरुआत की थी, जो इस साल 16 मई को घुष्मेश्वर राजस्थान के साथ संपन्न हुई। 
'रावघाट के योद्धाÓ एवं भिलाई स्टील प्लांट द्वारा सन 2010 में 'भिलाई मित्र पुरस्कारÓ से सम्मानित श्री चावड़ा ने बताया कि गिनीज बुक में इसे दर्ज कराने का विचार जलाभिषेक के दौरान ही आया। क्योंकि जहां भी वह गए, स्थानीय पुजारियों से लेकर कई जानकार लोगों ने यही बताया कि कैलाश मानसरोवर से जल लाकर जलाभिषेक करने की अपने आप में यह अब तक की पहली अनूठी घटना है। जिसका पूर्व में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए वह गिनीज बुक विश्व रिकार्ड के लिए 40 हजार रुपए की औपचारिक फीस के साथ वह आवेदन कर रहे हैं। 
12 नहीं 15 ज्योर्तिलिंगों का जलाभिषेक किया
घुष्मेश्वर शिवाड़ राजस्थान में जलाभिषेक करते श्री चावड़ा 
श्री चावड़ा ने बताया कि पौराणिक कथाओं एवं ज्ञात इतिहास के अनुसार देश में भगवान शंकर के द्वादश (बारह) ज्योर्तिलिंग है,लेकिन इन घोषित 12 ज्योर्तिलिंगों के अतिरिक्त 3 ज्योर्तिलिंगों के देखरेख कर्ता ट्रस्टी संस्थानों द्वारा अपने-अपने इन 3 अतिरिक्त ज्योर्तिलिंगों को भी बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक मुख्य ज्योर्तिलिंग बतलाया जाता है। इसी कारण से उन्होंने इन सभी 15 ज्योर्तिलिंगों का मानसरोवर के पवित्र जल से जलाभिषेक 2 वर्ष 11 माह की अवधि में किया।
मानसरोवर झील के पवित्र जल से यहां किया जलाभिषेक जलाभिषेक 
2010 में महाराष्ट्र में औंढा नागनाथ हिंगोली, परली बैजनाथ बीड, भीमा शंकर खेड़ पुणे, त्र्यंबकेश्वर नासिक, घृष्णेश्वर औरंगाबाद, 2011 में काशी विश्वनाथ वाराणसी उप्र, बाबा बैजनाथ देवघर झारखंड, केदारनाथ पौढ़ी गढ़वाल उत्तराखंड, ओमकारेश्वर खंडवा मध्यप्रदेश, महाकालेश्वर उज्जैन मध्यप्रदेश, श्री शैलम मल्लिकार्जुन आंध्र प्रदेश, नागेश्वर जामनगर गुजरात, सोमनाथ वेरावल गुजरात और रामेश्वरम तमिलनाडू, 2013 में घुष्मेश्वर शिवाड़ राजस्थान। 
चांदी के लोटे के साथ तीनों बार मानसरोवर पहुंचा भक्तों का फिंगर प्रिंट 
अपने घर में चांदी के लोटे के साथ श्री चावड़ा 
श्री चावड़ा ने बताया कि अपनी तीन मानसरोवर यात्राओं में वह चांदी का विशेष लोटा साथ लेकर गए थे। इस लोटे की तीनों बार पूजा अर्चना की गई। इसके साथ ही वह इसमें उन सभी परिचित शिवभक्तों के हाथों टीका लगवाते थे। इसके पीछे उनका मानना है कि जो शिवभक्त वहां नहीं पहुंच सकते, कम से कम उनके फिंगर प्रिंट वहां पहुंच जाए। श्री चावड़ा ने बताया कि इस चांदी के लोटे के अलावा वह वहां मिलने वाले 5 लीटर के केन में भी मानसरोवर झील का जल लाते रहे हैं। इस जल से वह सभी ज्योतिर्लिंगों का अभिषेक कर चुके हैं। वहीं अब जल चूंकि कम हो रहा था तो इसमें उन्होंने अपनी जीवनदायिनी शिवनाथ नदी का जल मिलाया है। श्री चावड़ा ने बताया कि गिनीज बुक में दावेदारी के लिए वह सभी यात्राओं से जुड़े दस्तावेज, फोटोग्राफ्स और वीडियो को प्रमाण के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं।
विनोद चावड़ा द्वारा संपादित शिव भक्ति की नयी रीत
 कैलाश मानसरोवर यात्राएं एवं यात्रा के दौरान मानसरोवर झील से संग्रहित पवित्र जल से सभी ज्योर्तिलिंगों का रिकार्ड अवधि में जलाभिषेक ।

विनोद चावड़ा की उपरोक्त एैतिहासिक यात्राओं के दौरान सहयात्रियों के नाम
कैलाश-मानसरोवर यात्रा- 
2009 - पं. विष्णु प्रसाद शर्मा, कसारीडीह, दुर्ग।
2010 - अमृतभाई सोलंकी, श्रीमती चंदुलाबेन अमृतभाई सोलंकी (पशुपतिनाथ/काठमांडु तक के सहयात्री), सोलंकी मेडिकल, दुर्ग।
अमित अमृतभाई सोलंकी, सोलंकी मेडिकल, दुर्ग। 
2012 - नीरजभाई अमृतलालभाई वेगड़ एवं संतोष मिश्रा, दोनों जबलपुर से, श्रीमती एवं श्री सूरज रामसुजान मिश्रा, पदमनाभपुर, दुर्ग 
मानसरोवर झील के पवित्र जल से 15 ज्योर्तिलिंगों के जलाभिषेक यात्राओं के सहयात्रीगण:-
अमृतभाई सोलंकी, चंदुलाबेन सोलंकी, प्रभाबेन सोलंकी, धरमसीभाई टांक, निर्मलाबेन टांक, प्रदीप चौबे सपत्निक एवं बड़ी बहन के साथ, नीरजभाई लीना वेगड़, सोनिया चावड़ा एवं रेणुकाबेन सोलंकी।
डॉ. महेशचंद्र शर्मा, धर्म व संस्कृति के जानकार
नोट-उपरोक्त महिला सहयात्रियों में से 2 सहयात्रियों द्वारा भी 11 माह 26 दिवस की अवधि में मानसरोवर झील के पवित्र जल से 14 ज्योर्तिलिग का जलाभिशेक करके षिव भक्ति की इस नयी रीत का रिकार्ड महिलाओं द्वारा बनाये जाने की उपलब्धि (रिकार्ड) को हासिल किया जा चुका है। ये महिला सहयात्री 1 ज्योर्तिलिंग का अभिषेक करने से अपरिहार्य कारणों से वंचित रह गयी है।

वास्तव में दुर्लभ है ऐसा जलाभिषेक
शिवजी का जलाभिषेक करने लोग आस-पास से जल लाते हैं, खास तौर पर पास की नदियों का। इसके अलावा लोग गंगाजल से भी जलाभिषेक करते हैं। लेकिन यह वास्तव में दुर्लभ है कि कोई कैलाश मानसरोवर जाए और वहां से जल लाकर पूरे भारत में ज्योर्तिलिंगों का जलाभिषेक करे। मानसरोवर झील के जल की अपनी मान्यता है और इसे बेहद पवित्र माना जाता है। यह विलक्षण इसलिए है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी बड़ी दुर्गम है और यह शिवजी का निवास स्थान माना जाता है। अधिवक्ता श्री चावड़ा की यह पहल वास्तव में अनूठी है। 

टाउनशिप का विवाद सुलझाना बड़ी चुनौती

कुम्हारी गाँव की सरहद 
 रावघाट परियोजना शुरू होने में एक बड़ी चुनौती टाउनशिप का विवाद सुलझाना है। रावघाट से अंतागढ़ और नारायणपुर दोनों समान दूरी (25 किमी) पर है। दोनों इलाके के लोगों के अपने-अपने दावे हैं और इन दावों के पीछे आंदोलनकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों का समर्थन भी है। ऐसे में भिलाई स्टील प्लांट मैनेजमेंट तय नहीं कर पा रहा है कि माइंस की टाउनशिप कहां होगी..? इस बीच रावघाट परियोजना के निजीकरण की आहट को देखते हुए भी स्थानीय लोग खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।
रावघाट की माइनिंग लीज मिलने के बाद बीएसपी के सामने टाउनशिप तय करने की सबसे बड़ी चुनौती रही है। स्थानीय जनप्रतिनिधि और आंदोलनकारी शुरू से दल्ली राजहरा की तरह की सर्वसुविधायुक्त टाउनशिप मांगते रहे हैं। बीएसपी के सामने दिक्कत है कि वह टाउनशिप बनाएं तो कहां? बीएसपी ने इस विवाद को देखते हुए कई मामलों में बीच का रास्ता निकाला भी है। सूत्रों की मानें तो अंतागढ़ में टाउनशिप के लिए कुम्हारी गांव व मेढक़ी नदी के बीच की चिह्नित जगह  पर कर्मचारियों के लिए मकान बनाने की तैयारी है, वहीं नारायणपुर में अफसरों के लिए लिए सर्वसुविधायुक्त आवास बनाए जाएंगे।
अपनी निगमित सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) के तहत बीएसपी ने अंतागढ़ -नारायणपुर दोनों जगह समान रुप से कार्य शुरू किया है, यहां तक कि कार्यों का ज्यादातर बंटवारा भी दोनों जगह समान रुप से किया गया है। बीएसपी 60 स्कॉलरशिप दे रही है, जिसमें 30 अंतागढ़ और 30 नारायणपुर से है। बीएसपी ने रामकृष्ण मिशन आश्रम के साथ मिलकर अगर नारायणपुर में वार्षिक खेल मेला शुरू किया है तो अंतागढ़ के स्टेडियम को संवार कर वहां अंतरशालेय फुटबॉल टूर्नामेंट भी शुरू किया है। बीएसपी की नीति दोनों इलाके के लोगोंको संतुष्ट करने की है लेकिन अंसतोष लगातार बढ़ रहा है। इससे बीएसपी का सेवा कार्य भी विवादित होता जा रहा है। अंतागढ़ निवासी और रावघाट संघर्ष समिति से जुड़े अनिल चंदेल बताते हैं-राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी)बैलाडीला में लौह अयस्क का खनन कर रहा है लेकिन उसकी स्कॉलरशिप का फायदा समूचे बस्तर संभाग को मिलता है।
यही नहीं बीएससी नर्सिंग कोर्स के लिए एनएमडीसी वाले समूचे बस्तर से छात्राओं को चयनित कर हैदराबाद ले जाते हैं। इसके विपरीत बीएसपी ने स्कालरशिप के लिए सिर्फ 20 गांवों को चुना है। नर्सिंग कोर्स के लिए पहले  हर साल महज 2 छात्राओं को भिलाई ले जाते थे, पिछले साल अक्टूबर में हमारे आंदोलन के चलते दबाव बढ़ा तो आनन फानन में बीएसपी ने 20 छात्राओं को नर्सिंग कोर्स कराने मंजूरी दी। बीएसपी अपना सेवा कार्य यहां सिर्फ 18-20 गांवों में ही कर रहा है, जबकि भविष्य में प्रदूषण की चपेट में तो समूचे अंतागढ़ के गांव आएंगे। हम चाहते हैं कि यहां हमारे अंतागढ़ की आईटीआई के छात्रों को भिलाई में अप्रेंटिसशिप का मौका मिले। बीएसपी यहां एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल शुरू करे और गांव-गांव मेडिकल वैन घुमाने के साथ-साथ अंतागढ़ में एक सर्वसुविधायुक्त अस्पताल भी खोले।
टाउनशिप तो कुम्हारी में ही बनेगी
विक्रम उसेंडी 
अंतागढ़ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रदेश के वनमंत्री विक्रम उसेंडी का कहना है कि टाउनशिप कुम्हारी में ही बनेगी। राजधानी रायपुर में श्री उसेंडी ने बताया कि 4 साल पहले ही जिला प्रशासन, बीएसपी मैनेजमेंट और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ कुम्हारी गांव के पास मेंढक़ी नदी से लगी हुई 500 एकड़ की राजस्व भूमि टाउनशिप के लिए चिह्नित की जा चुकी है। इसके बाद विवाद तो होना नहीं चाहिए। माओवादी धमकियों के संबंध में श्री उसेंडी का कहना है कि वह नहीं बता सकते कि वास्तव में धमकी कौन दे रहा है लेकिन वहां पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था है और परियोजना शुरू होने में कोई खतरा नहीं है। रावघाट के निजीकरण संबंधी सवाल पर श्री उसेंडी ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि अभी तक तो उन्हें कोई जानकारी नहीं है लेकिन स्थानीय हितों पर आंच आएगी तो इस परियोजना का विरोध करने वालों में सबसे पहले मैं सामने आऊंगा।

रावघाट की टाउनशिप कनेरा में फाइनल 


रावघाट लौह अयस्क परियोजना के अंतर्गत बीएसपी अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए खनन जल्द से जल्द शुरू करने की कोशिश कर रही है। इससे पहले बीएसपी के अफसर नागरिक सुविधाओं को लेकर विवाद हल करने में जुटे हैं। रावघाट में नागरिक सुविधाओं को लेकर सबसे बड़ा मुद्दा टाउनशिप का था।
 राज्य शासन के दखल के बाद यह मुद्दा अब लगभग सुलझ चुका है। बीएसपी माइंस विभाग के  एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि टाउनशिप के लिए अंतागढ़ के पास कुम्हारी, ताड़ोकी और नारायणपुर के पास बिजली व कनेरा गांव का सर्वे हुआ था। चूंकि अंतागढ़ और नारायणपुर दोनों इलाके के लोग अपने-अपने क्षेत्र में टाउनशिप मांग रहे थे और इन मांगों के पीछे दोनों जगहों के विधायक विक्रम उसेंडी और केदार कश्यप भी सक्रिय थे, इसलिए इसमें राज्य शासन ने हस्तक्षेप की। मुख्यमंत्री की मध्यस्थता में दोनों क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों की बैठकें हुई और अंतत: सहमति कनेरा गांव पर बनी।
कनेरा गांव में टाउनशिप बनाने के लिए सर्वे व पेड़ कटाई का काम पिछले साल 25 अक्टूबर 2012 को पूरा हो चुका है। बीएसपी मैनेजमेंट चूंकि अंतागढ़ के लोगों को भी नाराज नहीं करना चाहता, इसलिए कुम्हारी गांव में कर्मचारियों के लिए आवास बनाने की भी योजना है। वहीं अंतागढ़ में अस्पताल इसी माह से शुरू किया जा रहा है। प्रबंधन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक फिलहाल किराए के भवन में अस्पताल शुरू किया जा रहा है लेकिन जल्द ही खुद का भवन भी बना लिया जाएगा। 

जवानो-अफसरों के लिए जुटाई जा रही सुविधाएं 


नारायणपुर की ओर से रावघाट जाने का मार्ग 

रावघाट परियोजना की सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों की टुकडिय़ों की तैनाती शुरू हो गई है। वहीं कुछ कर्मी और अफसर भी नारायणपुर में कैंप कर प्रोजेक्ट को गति देने में जुटे हैं। इन अफसरों और सुरक्षा बल के जवानों के लिए बीएसपी ने नारायणपुर में गेस्ट हाउस बनाने वहां के कलेक्टर को फाइल इस साल 31 जनवरी को सौंप दी गई है। वहीं आवाजाही के लिए वाहन भी किराए से लिए जा रहे हैं। सुरक्षा बलों के लिए फिलहाल दो बैरक तैयार हो चुके हैं, वहीं आगे और भी बैरक बनाने सामानों की खरीद के लिए बीएसपी ने टेंडर जारी कर दिया है। 

दो बटालियन से शुरू होगा रावघाट का मोर्चा

पोर्टेबल बैरक से होगी रावघाट की निगरानी
केवटी गाँव, जहाँ रेल लाइन का काम बंद है 
सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील रावघाट परियोजना में चौकसी के लिए सेल-भिलाई स्टील प्लांट ने 5 बटालियन मांगी थी। इसकी शुरूआत दो अर्धसैनिक बलों की टुकडिय़ों से हो रही है। करीब 2 हजार जवानों के लिए सारे इंतजाम शुरू हो गए हैं। इनके लिए अत्याधुनिक बैरक बनाने बीएसपी ने फेब्रिकेटेड स्टील भेज दिया है। इस माह से बैरक निर्माण भी शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ मेें यह पहला मौका होगा जब लौह अयस्क निकालने इतनी ज्यादा चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की जा रही है।
बीएसपी समूचे रावघाट की सुरक्षा व्यवस्था के लिए 417 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। इसमें से रेल लाइन की सुरक्षा के लिए 217 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। रावघाट से दल्ली राजहरा तक करीब 20 जगहों पर अर्ध सैनिक बलों की टुकडिय़ां तैनात की जाएगी, जहां यह अत्याधुनिक बैरक होंगेे। इन बैरकों के लिए महीने भर के भीतर भिलाई से करीब 600 टन फैब्रिकेटेड स्टील भेजा जा चुका है। इनसे साल भर में बैरक बनाए जाएंगे। 95 किमी की इस रेल लाइन पर सीआरपीएफ, बीएसएफ और एसएएफ के जवान तैनात रहेंगे। जिससे की 24 घंटे पुख्ता सुरक्षा हो सके। सूत्रों की मानें तो इन बैरकों का निर्माण मुख्य रुप से राजहरा, खैरवाही, डौंडी, कच्चे,भैंसामुंडी, मुला, संबलपुर, भानुप्रतापपुर, खंडा नदी के पास कुत्तावाही, बांसला, पंडरीपानी, केवटी, दुर्गकोंदल, कनकपुर, मासबरस, अंतागढ़, बोंदेनार, ताड़ोकी, सालेभाठ, फुलपुर, रावघाट में रावघाट थाने के करीब कोयलीबेड़ा मोड़ और मंदिर के बीच सरंगीपाल में किया जाएगा।
पोर्टेबल होंगे ये बैरक- रावघाट में अर्धसैनिक बलों की बैरकों के लिए भिलाई स्टील प्लांट ने स्टील का फैब्रिकेशन छत्तीसगढ़ पुलिस के सुझावों के आधार पर किया है। भिलाई से भेजे गए शीट, एंगल और चैनल सहित तमाम स्टील से अर्धसैनिक बलों की इंजीनियरिंग शाखा के जवान बैरक का निर्माण करेंगे। ये बैरक पोर्टेबल होंगे, यानि इन्हें जरुरत पडऩे पर खोल कर कहीं भी ले जाया जा सकेगा। इनसे लगे हुए वाच टावर होंगे, वहीं इन बैरकों के दोनों और सीमा पर इस्तेमाल होने वाले कंटीले तारों की बाड़ भी होगी। जिसे पार करना नामुमकिन होगा।

रेल चलेगी...लेकिन कैसे..?

पहले चरण का आधा काम भी नहीं हुआ अब तक
डौंडी के पास रेल लाइन निर्माण कार्य 
रावघाट के लौह अयस्क दल्ली राजहरा के रास्ते भिलाई लाने बीएसपी ने 5 दिसंबर 98 को रेलवे के साथ पहला एमओयू किया था। सरकारी औपचारिकताएं पूरी करते-करते कब यह एमओयू ठंडे बस्ते में चले गया, बीएसपी अफसरों को भी नहीं मालूम। फिर बीते दशक में रावघाट के निजीकरण का मुद्दा गरमाया और इसी माहौल में 11 दिसंबर 2007 को दल्ली राजहरा-रावघाट-जगदलपुर के बीच 265 किमी लंबे रेल लिंक प्रोजेक्ट के लिए रेलवे, छत्तीसगढ़ शासन और स्टील अथारिटी आफ इंडिया (सेल) ने एमओयू किए। योजना थी अगले 5 साल यानि 2012 तक हर हाल में पहला चरण (दल्ली राजहरा से रावघाट) पूरा कर लिया जाए। लेकिन जमीनी हालात वैसे नहीं है। नक्सल प्रभाव व अन्य वजहों से यहां कार्य बुरी तरह प्रभावित है। 
केवटी गाँव में नक्सल वारदात के निशान 
रावघाट रेल परियोजना के लिए रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) नई दिल्ली ने राजहरा से भानुप्रतापपुर (केवटी) तक रेलमार्ग का ठेका मेसर्स शक्तिकुमार मदनलाल संचेती इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एसएमएस लि.) नागपुर को 20 अक्टूबर 09 को जारी किया। इसके बाद  शुरूआती कार्यों के लिए 26 अक्टूबर 09 को एसएमएस लि. ने 20 करोड़ रुपए साउथ इस्टर्न सेंट्रल रेलवे बिलासपुुर में जमा करवाए। एसएमएस लि. का काम भी जोरों से शुरू हो गया। भानुप्रतापपुर में रेडी मिक्स कांक्रीट प्लांट लगाया गया।  भानुप्रतापपुर में ही 24 रेलवे क्वार्टर का निर्माण जोरों पर है। आरवीएनएल इस रेलमार्ग के लिए भिलाई स्टील प्लांट से 2272.24 टन टीएमटी बार मार्च 11 तक भानुप्रताप पुर के लिए ले जा चुका है। फिलहाल कुल 23 ब्रिज का निर्माण कार्य चल रहा है। इस बीच दो साल पहले 14 मार्च 11 को केवटी में शाम करीब 4 बजे माओवादियों ने मेसर्स एसएमएस के 10 से ज्यादा वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। केंवटी में आज भी एक जला हुआ ट्रक खड़ा हुआ है। इस घटना के बाद केवटी में तो काम रुक ही गया , साथ ही इसके आगे रावघाट तक काम शुरू नहीं हो पाया है। केंवटी से रावघाट तक 53 किमी का काम पूरी तरह बंद है। यहां का ठेका मेसर्स जेएमसी अहमदाबाद को दिया गया है। जेएमसी अपनी सहायक कंपनी कल्पतरू के साथ मिलकर जमीन समतलीकरण का काम कहीं-कहीं शुरू करवा पाई है।

रेल लाइन की स्थिति-2013
एसएमएस कंपनी की जानकारी देते श्री सिंह 
डौंडी में बन रहा रेलवे स्टेशन भवन 
दल्ली राजहरा से केवटी तक 42.6 किमी में कुछ वन क्षेत्र को छोडक़र भू-समतलीकरण का काम पूरा हो चुका। इस पूरी पट्टी में दल्ली राजहरा के बाद डौंडी, भानुप्रतापपुर और केवटी तीन बड़े रेलवे स्टेशन के लिए भवन निर्माण जारी। डौंडी रेलवे स्टेशन डौंडी के बजाए खैरवाही गांव और भानुप्रतापपुर का रेलवे स्टेशन कन्हारगांव में बन रहा है। पहले चरण में सिंगल ट्रैक बिछाई जा रही है। तीनों रेलवे स्टेशनों में क्रमश: 10, 80 और 20  स्टाफ क्वार्टर भी बनाए जा रहे हैं।
रावघाट रेल परियोजना के मुख्य बिंदु
1-टनल (सुरंग) 60 मीटर लंबी
40- सडक़ अंडर ब्रिज
16- रोड ओवर ब्रिज
42-बड़े ब्रिज
303- छोटेब्रिज

विवाद हैं कि थम नहीं रहे
रावघाट रेल परियोजना में विवाद मुआवजा व नौकरी की मांग को लेकर है। प्रभावितों की एक लंबी सूची है। रेलवे ने यहां की जमीनों के लिए एक लाख प्रति एकड़ का मुआवजा दिया है। लोग रेलवे में नौकरी भी चाहते हैं लेकिन नियमों का पेंच ऐसा है कि ज्यादातर अपात्र घोषित हो रहे हैं।
 रेलवे जहां 10 लोगों को नौकरी की बात कहता है तो वहां 200 से ज्यादा दावेदार सामने आ जाते हैं। पिछले साल से रेलवे ने नियम बदल दिए हैं, जिसके तहत 60 फीसदी या उससे ज्यादा जमीन रेलवे लाइन की जद में आने वाले प्रभावितों को ही नौकरी मिलेगी,लेकिन इसके लिए आईटीआई में दक्षता का प्रशिक्षण प्रभावित को खुद ही लेना होगा। इससे आदिवासी परेशान हैं कि आखिर रेल यहां विकास के लिए आ रही है या सिर्फ उनके इलाके का दोहन करने। 

अगले 3 साल में भी मुश्किल होगा अयस्क निकालना


रावघाट की परिस्थितियां कभी नहीं रही अनुकूल

रावघाट खदान  का खनन पट्टा (माइनिंग लीज ) मिलने के बाद बी एस पी  की टीम 
रावघाट के लोगों का दिल जीतने भिलाई स्टील प्लांट आदिवासी अंचल के चुनिंदा गांवों में घर-घर सोलर लैंप बांट रहा है और सार्वजनिक जगहों पर सोलर लैंप भी लगवा रहा है। रावबाबा मंदिर के ठीक सामने स्थित माई मंदिर में भी सोलर लैंप लगे हंै। इसे विडंबना ही कह सकते हैं कि इसी सोलर लैंप के ठीक नीचे माओवादियों ने वार्निश से ‘रावघाट परियोजना का विरोध’ लिख दिया है, ताकि रात में भी इसे साफ-साफ पढ़ा जा सके। हालांकि माओवादियों की मौजूदगी को देखते हुए और ज्यादा अर्धसैनिक बलों की तैनाती, अत्याधुनिक बैरक और दूसरे कई इंतजाम किए जा रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद जमीनी हालात ऐसे नहीं है कि बीएसपी अपने मौजूदा प्लान के मुताबिक रावघाट से 2016 तक भी लौह अयस्क का एक ढेला भिलाई ला सके।
1984 से रावघाट लौह अयस्क भंडारों के खनन पट्टे (एमएल) के लिए भिलाई स्टील प्लांट की कोशिशों को 2009 में जाकर अंजाम मिला। सारी प्रक्रियाएं पूरी हो गई हैं, इसके बावजूद बाधाओं का पहाड़ कायम है। हालात यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘हैच’ को रावघाट माइंस की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने ठेका डेढ़ साल पहले दिया गया है। डीपीआर के लिए ‘हैच’ कंपनी को वहां जाकर कम से कम ट्रक भर के सैंपल इक_ा कर प्रयोगशाला में लाना है और उसका तमाम पैरामीटर्स पर विश्लेषण करना होगा। इसके आधार पर हैच ‘पायलट प्लांट’ की रिपोर्ट भी बनाएगा। डीपीआर में ही रावघाट से दल्ली राजहरा होते हुए भिलाई तक लौह अयस्क पहुंचाने की पूरी रणनीति भी ‘हैच’ को बना कर देना है। यह तो सब तकनीकी बातें हैं लेकिन हकीकत यह है कि ‘हैच’ का अमला अभी तक वहां से एक ट्रक तो दूर मु_ी भर लौह अयस्क भी नहीं निकाल पाया है।
दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत रेल परियोजना को लेकर है। दल्ली राजहरा से डौंडी तक रेल लाइन का काम तो जोरों पर चल रहा है लेकिन दो साल पहले 14 मार्च 11 को केवटी गांव में दिन दहाड़े हुई नक्सली वारदात के बाद से यहां से आगे रावघाट तक रेल परियोजना का कार्य पूरी तरह ठप पड़ा है। पेड़ों की कटाई के लिए सारी प्रक्रिया पूरी हो गई है लेकिन पेड़ों की मार्किंग के बाद अब तक सिर्फ कुहचे, खसगांव, लामपुरी, पोडग़ांव, हरहरपानी, गोड़बिनापाल और हवेचुल जैसे इक्का-दुक्का गांव में सुरक्षा दस्तों की मौजूदगी में पेड़ कटाई और ढुलाई का काम हो पा रहा है। केवटी से रावघाट तक 53 किमी की पट्टी में रेल लाइन के लिए लाखों पेड़ काटे जाने हैं। यहां पेड़ कटाई के काम में लगे एक ठेकेदार ने उम्मीद जताते हुए कहा कि आगे रावघाट के लिए और भी बल आएगा तो संभव है कि काम में तेजी आए। यहां बीएसपी के सेवाकार्य और टाउनशिप को लेकर भी विवाद की स्थिति है। बीएसपी ने इन्हीं सारी बाधाओं को देखते हुए पहले 2012 तक यहां से अयस्क ले जाने की योजना बनाई थी। ये अवधी भी पिछले साल पूरी हो गई है। अब फिर अगले तीन साल की उम्मीद बीएसपी को है लेकिन अभी भी हालात ऐसे नहीं है कि 2016 तक यहां से लौह अयस्क निकला जा सकेगा।
रावघाट तारीखों में


  • 30 अगस्त 1983- बीएसपी (सेल) की ओर से रावघाट की लौह अयस्क खदानों में खनन के लिए पहला औपचारिक आवेदन दिया।
  • 21 मई 1991- खान मंत्रालय ने माइनिंग लीज हेतु वन विभाग की क्लियरेंस के लिए आवेदन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा।
  • 4 अगस्त 98- वन विभाग ने क्लियरेंस का आवेदन पर्यावरणीय वजहों से रद्द किया।
  • 5 दिसंबर 98- राजहरा-रावघाट रेललाइन के लिए रेलवे के साथ पहला एमओयू।
  • 5 नवंबर 2000- वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ नए सिरे से माइनिंग प्लान बनाने कहा।
  • 9 जून 2003- छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने यह तय किया कि ‘एफ’ डिपॅाजिट का कोरेगांव ब्लॅाक निजी क्षेत्र को दिया जाए।
  • 23 नवंबर 2004-भारतीय खनन ब्यूरो द्वारा बीएसपी के लिए रावघाट का माइनिंग प्लान बनाया गया।
  • 20 मई 2005- केंद्रीय संस्थान बोटानिकल सर्वे आफ इंडिया तथा जुलाजिकल सर्वे आफ इंडिया रावघाट का विस्तृत सर्वे प्रारंभ किया।
  • 11 दिसंबर 2007- दल्ली राजहरा-रावघाट-जगदलपुर के बीच 265 किमी लंबे रेल लिंक प्रोजेक्ट एमओयू पर रेलवे, छत्तीसगढ़ शासन और स्टील अथारिटी आफ इंडिया (सेल) ने हस्ताक्षर किए।
  • 4 जून 2009-भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रावघाट के समूचे ‘एफ’ ब्लाक में माइनिंग के लिए सेल-बीएसपी के पक्ष में प्रथम चरण की पर्यावरणीय मंजूरी दी।
  • 13 नवंबर 12-सेल को रावघाट की सुरक्षा के लिए 5 बटालियन देने केेंद्रीय गृह मंत्रालय का फैेसला। पहले चरण में 1500 अर्ध सैनिक जवानों की तैनाती होगी।
  • रावघाट आयरन ओर माइंस की खास बातें

भिलाई से राजहरा 85 किमी और राजहरा से रावघाट 95 किमी की दूरी पर है। रावघाट की आयरन ओर माइंस में कुल छह ब्लाक हैं जिनमें ए ब्लाक में 08.06 मिलियन टन, बी ब्लाक में 10.80 मिलियन टन, सी ब्लाक में 56.22 मिलियन टन, डी ब्लाक में 167.00 मिलियन टन, ई ब्लाक में 14.40 मिलियन टन और एफ ब्लाक में 456.00 मिलियन टन इस तरह कुल 711 मिलियन टन लौह अयस्क का भंडार है। बीएसपी को फिलहाल ‘एफ’ ब्लॉक के 2028.797 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन का पट्टा हासिल हुआ है।