Tuesday, January 5, 2016

मैनें इंदिरा गांधी नहीं गायत्री देवी से 
प्रभावित होकर लिखी थी 'आंधी' 

प्रख्यात कथाकार व पत्रकार कमलेश्वर से खास चर्चा 


साक्षात्कार के अगले दिन सुबह
भिलाई (12 जनवरी 2003)। प्रख्यात साहित्यकार व पत्रकार कमलेश्वर का मानना है कि साहित्य कोई क्रांति नहीं ला सकता बल्कि क्रांति लाने वालों का मार्गदर्शन भर कर सकता है। 
बहुचर्चित उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' के बेस्ट सेलर बनने से उन्हें अपने उद्देश्यों की पूर्ति का संतोष है। इंदिरा गांधी पर केंद्रित माने जाते रहे बहुचर्चित उपन्यास 'काली आंधी' के संबंध में कमलेश्वर का कहना है कि उन्होंने यह उपन्यास इंदिरा गांधी से प्रभावित होकर नहीं बल्कि जयपुर की महारानी गायत्री देवी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लिखा था।
 इन दिनों इंदिरा गांधी पर ही महत्वाकांक्षी फिल्म का लेखन कर रहे कमलेश्वर मानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और सीमांत गांधी पर भी फिल्म बननी चाहिए। 
कमलेश्वर के मुताबिक छत्तीसगढ़ में श्रेष्ठ साहित्य लिखा जा रहा है क्योंकि यहां के लोग बाजारवाद से दूर हैं। छत्तीसगढ़ी बोली में भाषा बनने की उन्हें पूरी संभावनाएं नजर आती है। 
इन दिन गुजरात त्रासदी पर केंद्रित उपन्यास लिख रहे कमलेश्वर से उनके भिलाई प्रवास के दौरान विशेष बातचील हुई। 


सवाल-जवाब

0 दो वर्ष पूर्व लिखा गया आपका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' आज भी बेस्ट सेलर है। 
जिन उद्देश्यों को लेकर आपने उपन्यास लिखा, क्या आप उसमें सफल रहे? 
00 इस उपन्यास को जितना विशाल व विराट पाठक समुदाय मिला, उससे निश्चित ही संतोष हुआ। हिंदी में इसके 9 संस्करण निकल चुके हैं और मराठी, उर्दू, बांग्ला व उडिय़ा में इसका अनुवाद हुआ।
कई जगह यह किताब 'ब्लैक' में साइक्लोस्टाइल स्वरूप में भी बिकी। मेरा संदेश ज्यादा लोगों तक पहुंचा। इससे लगता है कि मैं अपने उद्देश्य में सफल रहा। 

0 आपने (काली ) आंधी जैसी संवेदनशील फिल्म लिखी तो मिस्टर नटवरलाल और राम-बलराम जैसी मसाला फिल्म भी. क्या मसाला फिल्म लिखते हुए कहीं आपको अपने स्तर से समझौता करना पड़ा? 
00 कोई समझौता नहीं। अगर मैं व्यावसायिक तरीके से 'मिस्टर नटवरलाल' या 'राम-बलराम' लिख रहा हूं तो मेरा मकसद अपनी फिल्म को सफल बनाना है। अब इसका मतलब यह नहीं कि मैं गलत करूंगा।

जयपुर सांसद गायत्री देवी अपनी जनता की समस्याएं सुनते हुए।

0 आपकी 'काली आंधी' में इंदिरा गांधी की छवि दिखती है? 
00 ऐसा नहीं है, यह लोगों की गलतफहमी है कि 'आंधी' मैंनें इंदिरा गांधी को केंद्र में रख कर लिखी। दरअसल उन दिनों जयपुर में महारानी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ रही थी। 
मैं जयपुर गया था चुनाव की रिपोर्टिंग करने। वहां देखा तो गायत्री देवी एक हाथ मेें नंगी तलवार और सिर पर कलश लिए पूजा के लिए मंदिर जा रही हैं। उनके पीछे हजारों की भीड़ है। उस वक्त मेरे ध्यान में आया कि ऐसी महिलाएं ही राजनीति में आनी चाहिए और इसके बाद मैनें 'काली आंधी' लिखना शुरू किया। 

0 लेकिन इस पर बनीं फिल्म तो इंदिरा गांधी के जीवन के काफी करीब लगती है? 
00 दरअसल जब गुलजार ने 'आंधी' बनाने सुचित्रा सेन को चुना तो उसके सामने कोई मॉडल नहीं था।

 हमनें इंदिरा गांधी, तारकेश्वरी सिन्हा और नंदिनी सत्पथी के चेहरे सामने रखे। जिसमें कहानी के अनुसार सुचित्रा सेन को इंदिरा गांधी की भाव-भंगिमा पसंद आई।इसके बाद सुचित्रा का गेटअप ठीक इंदिरा गांधी की तरह रखा गया, इसलिए लोगों को यह गलतफहमी हो जाती है। 


0 इन दिनों आप इंदिरा गांधी पर केंद्रित महत्वाकांक्षी फिल्म का लेखन कर रहे हैं। क्या आप उसमेें इंदिरा के संपूर्ण व्यक्तित्व से न्याय कर पाएंगे? 
00 जिस तरह रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' थी उसी तरह यह फिल्म होगी। यकीन मानिए, इसमेें इमरजेंसी के हालात, आपरेशन ब्ल्यू स्टार सहित तमाम वह बातें भी होंगी जो इंदिरा के व्यक्तित्व के दूसरे पहलू से भी रूबरू कराती है। 

0 क्या मनीषा कोईराला को दर्शक इंदिरा गांधी के रूप में स्वीकार कर पाएगा, जबकि वह 'छोटी सी लव स्टोरी' से विवादित हो गई हैं?
00 जिस वक्त कलाकार का चयन करना था हम लोगों ने तब्बू, नंदिता दास सेल लेकर दक्षिण व बांग्ला की कई अभिनेत्रियों के चेहरे व भाव-भंगिमा का अध्यन किया। 
लेकिन, कंप्यूटर पर मनीषा का चेहरा इंदिरा के काफी करीब लगा। इसलिए उसे चुना गया। जहां तक 'लव स्टोरी' वाली बात है तो मैं उस विवाद मेें पडऩा नहीं चाहता। आखिरकार मनीषा एक कलाकार भी है और विभिन्न किरदारों को निभाना उसका पेशा है। 

0 इंदिरा गांधी के अलावा राजनीति मेें आपको कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं लगता जिस पर आप फिल्म लिखें और वह चले भी? 
00 क्यों नहीं सुभाषचंद्र बोस हैं, जवाहरलाल नेहरू हैं और फिर सीमांत गांधी भी हैं। इन सब पर फिल्म बननी चाहिए। 

0 इन दिनों सैटेलाइट चैनलों पर जो सीरियल आ रहे हैं उनका समाज में कैसा प्रभाव महसूस करते हैं? 
00 माफ कीजिएगा, इन सीरियलों से मेरे अपने घर की महिलाएं 'डि-वैल्यूड' होती  दिखती है। सीरियलों में और खूबसूरत होती सास या बहू को देख कर मुझे लगता है कि इतनी सुंदर तो मेरे घर की महिलाएं भी नहीं है। 

0 हिंदी की पहली कहानी माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ़ में ही लिखी थी। लेकिन, आज भी साहित्य के नक्शे में छत्तीसगढ़ का विशेष स्थान नहीं बन पाया? 
00 साहित्य में छत्तीसगढ़ का महत्व तो पहले से ही रेखांकित हो चुका है। फिर मैनें पहले ही कहा कि छत्तीसगढ़ के पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी और सप्रे जी के बिना हिंदी साहित्य का इतिहास ही लंगड़ा है। 

0 फिलहाल छत्तीसगढ़ में जो साहित्य लिखा जा रहा है उस पर आपकी टिप्पणी? 
00 यहां छत्तीसगढ़ में तो बहुत अच्छा लिखा जा रहा है। परदेशी राम की कहानियां बहुत अच्छी है। कनक तिवारी, सतीश जायसवाल भी लिख रहे हैं। कबीर पर जितना अच्छा अंक महावीर अग्रवाल ने 'सापेक्ष' का निकाला है, मेरी नजर में पूरे भारत मेें इसकी मिसाल नहीं है। दरअसल छत्तीसगढ़ में इतना अच्छा इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि यहां के लोग बाजारवाद से दूर हैं। 

0 यहां मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का दर्जा दिलाने का संकल्प व्यक्त किया है। आपकी नजर में छत्तीसगढ़ी बोली के भाषा मेें तब्दील होने की क्या संभावनाएं हैं? 
00 बहुत संभावनाएं हैं। छत्तीसगढ़ी में कोई कमी नहीं है। दरअसल जब तक तमाम क्षेत्रीय सहयात्री भाषाएं पुष्ट होकर सामने नहीं आएंगी तब तक हिंदी समृद्ध नहीं होगी। 

0 यहां छत्तीसगढ़ में साहित्य के क्षेत्र में दो लाख रुपए का पुरस्कार विवादित हो गया है। आरोप है कि राज्य के सांस्कृतिक सलाहकार अशोक बाजपेयी के खेमे  से कथित रूप से जुड़े लोगों (विनोद कुमार शुक्ल और कृष्ण बलदेव वैद्य) को ही इस पुरस्कार से नवाजा गया। आपकी क्या राय है? 
00 अगर साहित्यकारों को सम्मान मिल रहा तो ये अच्छी बात है। बाकी बेवजह की बातों में कुछ रखा नहीं है। 

0 आज साहित्य में क्रांति जैसी बातें सुनाई नहीं देती? 
00 दरअसल साहित्य से क्रांति नहीं होती है बल्कि जो लोग क्रांति कर सकते हैं साहित्य उनके काम आता है। 

0 साहित्य में किसी वाद या एजेंडे का लेखन क्या मायने रखता है? 
00 एजेंडे का लेखन गलत है।स्त्री विमर्श,दलित विमर्श यह सब क्या है? यह ज्यादा दूर तक नहीं चल सकता। 

0 प्रारंभिक दिनों में आपने पेंटर का काम भी किया और आपका हस्तलेखन बहुत ही कलात्मक है। क्या आज भी पेंटिंग के शौक से रचनात्मक स्तर पर जुड़े हैं? 
00 नहीं पेंटिंग तो अब नहीं करता। क्योंकि एमएफ हुसैन पेंटिंग को जिस ऊंचाई तक ले गए हैं उसके बाद मुझे लगा कि यह मेरे काम की चीज नहीं है। वैसे मेरा मानना है कि क्रिएटिव ग्रेटनेस किसी भी काम को निरंतर करने से कायम रहती है। 

0 आपके समकालीन और पूर्ववर्ती में ऐसे कौन से व्यक्तित्व हैं, जिन्हे देख कर आपको लगता है कि ऐसा नहीं बन सका? 
00 ऐसा तो कोई भी नहीं। क्योंकि मुझे अपने आप पर भरोसा था। हां, प्रभावित जरूर रहा हूं। गणेश शंकर विद्यार्थी से, प्रेमचंद से और निराला के 3 उपन्यासों से। 

0 प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने गोवा चिंतन मेें जो हिंदूत्व की परिभाषा दी है उससे आप कितना इत्तेफाक रखते हैं? 
गुड़गांव के निवास में 2004
00 यह तो उनके लिए बड़ी सुविधाजनक चीज है। आप बताईए आखिर हिंदुत्व है क्या चीज? उनके अडवाणी, तोगडिय़ा,सिंघल, मोदी और ठाकरे सब का हिंदुत्व अलग-अलग है।
 पहले बाजपेयी ने अमरीका में खुद को संघ का सच्चा स्वयंसेवक कह दिया फिर भारत आकर संघ का मतलब भारत संघ बता दिया। 
अब गोवा चिंतन आया है तो यह सब उनकी सुविधा के हिसाब से है। कम शब्दों में कहूं तो एक मित्र ने कहा है-'बाजपेयी जी आपने घुटने तो बदलवा लिए लेकिन देश के घुटने तोड़ दिए।' 
गुजरात को लेकर अमरीका में बाजपेयी और इंग्लैंड में अडवाणी ने जब शर्मिंदगी का इजहार किया तो फिर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी में कैसे चले गए? अभी प्रवासी दिवस मनाया गया।
 इसमें उन्हीं लोगों को बुलाया गया जो थ्री पीस के नीचे भगवा पहनते हैं। पहले उनके लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था। अब अप्रवासी भारतीयों के साथ इसे अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रवाद का नाम दिया जा रहा है। यह बी हिंसक हिंदुत्व का दूसरा रूप है। 

0 तो आखिर हिंदुत्व है क्या? 
00 दरअसल हिंदुत्व तो सावरकर की किताब से पैदा होता है। जिसमें उन्होंने साफ कहा है कि इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। तो फिर इसे वही लोग 'डिफाइन' करें। 

0 प्रिंट मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश से क्या खतरा देखते हैं? 
00 खतरा तो अंग्रेजी पत्रकारिता को होगा, हिंदी पत्रकारिता को नहीं। हां, इससे भाषाई भगवाकरण का खतरा जरूर बढ़ रहा है। 

0 इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं? 
00 एक उपन्यास लिख रहा हूं। गुजरात में जो मानवीय त्रासदी हुई, यह उसी पर आधारित है। 
(रविवार 12 जनवरी 2003 को भिलाई निवास में लिया गया इंटरव्यू 13 जनवरी 2003 के हरिभूमि भिलाई-दुर्ग संस्करण में प्रमुखता से प्रकाशित)
 
परिचय
इंटरव्यू के मिनिएचर पर आटोग्राफ
कमलेश्वर (पूरा नाम-कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना) का जन्म 6 जनवरी 1932 को मैनपुरी उत्तरप्रदेश में हुआ। लेकिन, वे अपनी उम्र के साथ भारत की पिछले पांच हजार वर्षों की सांस्कृतिक उम्र को जोडऩा कभी नहीं भूलते। 
अपनी स्कूली पढ़ाई के बाद कमलेश्वर ने इलाहाबाद से इंटर-बीए और फिर हिंदी में एमए की पढ़ाई पूरी की। उनका पहला उपन्यास 'एक सडक़ सत्तावन गलियां' पहले 'हंस' में और फिर 'बदनाम गली' शीर्षक से भी छपा। 
उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद जीविका के लिए कुछ ऐसे कार्य भी किए जो अब बेहद अविश्वसनीय लग सकते हैं। मसलन किताबों एवं लघु पत्र-पत्रिकाओं के लिए प्रूफ रीडिंग, कागज के डिब्बों पर डिजाइन और ड्राइंग बनाने का काम,ट्यूशन पढ़ाना, पुस्तकों की सप्लाई से लेकर चाय के गोदाम में रात की पाली में चौकीदारी तक शामिल है। 
सन 1948 में पहली कहानी 'कॉमरेड' से लेकर अब तक इनकी साहित्यिक यात्रा में ढेरों कहानियां, उपन्यास, यात्रा संस्मरण, नाटक व आलोचनाएं प्रकाशित हो चुके हैं। पत्रिका 'सारिका' के संपादक (1967-78)के रूप में उन्होंने हिंदी कहानी के समानांतर आंदोलन का नेतृत्व किया। 
उनके कई उपन्यास छपने से पहले पत्रिकाओं में छप कर चर्चित हुए हैं साथ ही फिल्मों के लिए भी उन्होंने खूब लिखा। उनके उपन्यास 'काली आंधी' पर गुलकाार ने 'आंधी' नाम से बेहद सशक्त फिल्म बनाई। 
इसके अलावा उन्होंने मौसम, अमानुष, फिर भी, सारा आकाश जैसी कलात्मक फिल्मों से लेकर 'मि. नटवरलाल','सौतन', 'द बर्निंग ट्रेन' और 'राम-बलराम' जैसी मसाला फिल्मों सहित उन्होंने कुल 99 फिल्मों के लिए लेखन किया। इन दिनों वे इंदिरा गांधी पर बनने वाली महत्वाकांक्षी फिल्म के लिए लेखन कार्य में जुटे हुए हैं।
 दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक (1980-82) रहने के अलावा उन्होंने मीडिया के समस्त क्षेत्रों में काम किया है। दूरदर्शन के लिए अछूते विषयों और सवालों से पूरे देश को झकझोर देने वाले 'परिक्रमा' कार्यक्रम (जिसे यूनेस्को ने दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ टेलीविजन कार्यक्रम माना था) में कमलेश्वर ने ज्वलंत मुद्दों पर खुली और गंभीर बहस करने की दिशा में साहसिक पहल की थी। 
बीसवीं सदी अवसान की बेला में प्रकाशित उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' आज भी बेस्ट सेलर है। इन दिनों राष्ट्रीय दैनिक में संपादन के अलावा स्वतंत्र लेखन के साथ निजी टीवी चैनल को वे अपनी सेवाएं दे रहे हैं।  27 जनवरी 2007 को फरीदाबाद में उन्होंने आखिरी सांस ली।